किस श्राप के कारण मां सीता को भगवान राम से दूर रहना पड़ा था || ramayan story in Hindi || mata sita ki kahani
किस श्राप के कारण मां सीता को भगवान राम से दूर रहना पड़ा था || ramayan story in Hindi || mata sita ki kahani
दोस्तों हम सब जानते हैं कि माता सीता को ऐसे समय पर श्रीराम से दूर होना पड़ा जब वह गर्भवती थी । और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि माता सीता को श्राप मिला था। कि वह जब गर्भवती होगी तब अपने पति से दूर हो जाएगी। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की कहानी क्या है तो इस आर्टिकल को लास्ट तक जरूर पढ़ें।
एक बार माता सीता जी अपनी सहेलियों के साथ जनक जी के महल के बगीचे में मनोरंजन के लिए गई। वहां पर एक वृक्ष पर उन्होंने तोते के एक जोड़े को देखा । दोनों आपस में बातें कर रहे थे । एक ने कहा कि अयोध्या में एक सुंदर और प्रतापी कुमार है जिनका नाम श्री राम है । उनसे सीता जी का विवाह होगा ।
श्रीराम 11000 वर्षों तक इस धरती पर राज्य करेंगे । सीता और राम दोनों एक दूसरे के जीवनसाथी की तरह इस धरती पर सुख से जीवन बिताएंग। सीता ने अपना नाम सुना तो दोनों पक्षी की बात गौर से सुनने लगी। उन्हें अपने जीवन के बारे में और बातें सुनने की इच्छा हुई। सखी सहेलियों से कहकर उन्होंने दोनों पक्षी पकड़वा लिए।
सीता ने उन्हें प्यार से सहला या और कहा- डरो मत! तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो। यह बताओ यह ज्ञान तुम्हें कहां से मिला? मुझसे डरने की जरूरत नहीं ,दोनों का डर समाप्त हुआ । वे समझ गए कि यह स्वयं सीता है। दोनों ने बताया कि वाल्मीकि नाम के एक महर्षि है, वे उनके आश्रम में ही रहते हैं। वाल्मीकि रोज श्री राम और सीता के जीवन की चर्चा करते हैं ।उन्होंने वही यह सब सुना जो अब सब कंठस्थ हो गया है।
सीता ने और पूछा तो तोते ने कहा - दशरथ पुत्र श्री राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेगी। तीनों लोगों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी। सीता पुछती जाती और तोता उसका उत्तर देते जाता । वह दोनों पक्षी माता सीता के सवालों का जवाब देते-देते थक चुके थे ,उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है कहीं महीने लगेंगे सुनाने में । और दोनों उड़ने को तैयार हुए।
यह देख सीता ने कहा - तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया उनके बारे में बड़ी जिज्ञासा हुई है । जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते तब तक तुम दोनों मेरे महल में आराम से रह कर सुख भोगो।
माता सीता की इस बात पर तोती ने कहा- देवी हम वन के प्राणी हैं पेड़ों पर रहते हैं, सर्वत्र विचरते है । मैं गर्भवती हूं मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है। सीता जी नहीं मानी, तोते ने कहा आप जिद ना करें जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी, तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाऊंगा अभी तो हमें जाने दे।
सीता ने कहा - ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यही रहेगी । मैं इसे कष्ट नही होने दूंगी तोते को पत्नी से बड़ा प्रेम था । वह अकेला जाने को तैयार नहीं हुआ । जब तोते को लगा कि वह सीता के चुंगल से मुक्त नहीं हो सकता, तो विलाप करने लगा- मुनियों ने सत्य कहा है ,मौन रहना चाहिए यदि हम कथा कहते तो मुक्त रहते।
तोती अपने पति से बिछड़ना सहन नहीं कर पा रही थी। उसने सीता को कहा- आप मुझे पति से अलग ना करें नहीं तो मैं आपको शाप दे दूंगी।
इस बात पर सीता हंसने लगी उन्होंने कहा- शाप देना है तो दे दो। राजकुमारी का पक्षी के शाप से क्या बिगड़ेगा। तोती ने शाप दिया - एक गर्भवती को जिस तरह तुम उसके पति से दूर कर रही हो उसी तरह तुम जब गर्भवती रहोगी तो तुम्हें पति का बिछोह सहना पड़ेगा। शाप देकर तोती ने प्राण त्याग दिए।
पत्नी को मारता देख तोता क्रोध में बोला - अपनी पत्नी के वचन सत्य करने के लिए मैं ईश्वर को प्रसन्न कर श्रीराम के नगर में जन्म लूंगा और अपनी पत्नी का शाप सत्य कराने का माध्यम बनूँगा।
वही तोता बाद में अयोध्या का धोबी बना, जिसने झूठा लांछन लगाकर श्रीराम को इस बात के लिए विवश किया कि वह सीता को अपने महल से निष्कासित कर दें।
दोस्तों आप को यह कहानी केसी लगीं कमेन्ट करके जरूर बताए और कहानी को शेयर करे।
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